वट वृक्ष देववृक्ष कहलाता है क्योंकि इस वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु तथा अग्रभाग में देवाधिदेव शिव स्थित रहते हैं.

देवी सावित्री (Goddess Savitri) भी वट-वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं. इसी अक्षय वट के पत्रपुटक (पत्ते) पर प्रलय के अंतिम चरण में भगवान श्री कृष्ण (Lord Shree Krishna) ने बाल रूप में मार्कण्डेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिया था. प्रयागराज में पतित पावनी पवित्र गंगा नदी के तट पर वेणी माधव के निकट अक्षय वट प्रतिष्ठित है. भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रयागराज में संगम स्थित इस अक्षयवट को तीर्थराज का छत्र कहा है.

पंचवटी (Panchvati) का भी है विशेष महत्व
- संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥ इसी प्रकार तीर्थों में पंचवटी का भी विशेष महत्व है. पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है.

- कुम्भज मुनि के परामर्श से भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था.

- हानिकारक गैसों (Harmful Gases) को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वट वृक्ष का विशेष महत्त्व है. वट वृक्ष की औषधि के रूप में उपयोगिता से सभी परिचित हैं.

- जैसे वट वृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है, उसी प्रकार दीर्घ आयु, अक्षय सौभाग्य तथा निरंतर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए वट वृक्ष की आराधना की जाती है.

वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को किया था जीवित
- इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत से मृत पति को पुनः जीवित किया था. तब से ज्येष्ठ मास की अमावस्या (New Moon) को वट सावित्री व्रत किया जाता है.

- इसे बरगदाही या बर अमावस या बर अमावश्या भी कहते हैं. इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं.

- बहुत सी सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी (Jyeshtha Krishna Trayodashi) से अमावस्या तक तीन दिनों का उपवास रखती हैं.

इस तरह से करना चाहिए पूजन
- त्रयोदशी के दिन वट-वृक्ष के नीचे संकल्प लेना चाहिए, 'मम व्रत का इस वैधव्यादिसकलदोष परिहारार्थं ब्रह्मसावित्री प्रीत्यर्थं सत्यवत्सावित्री प्रीत्यर्थं च वटसावित्री व्रतमहं करिष्ये.' इस प्रकार संकल्प कर यदि तीन दिन उपवास करने का सामर्थ्य न हो तो त्रयोदशी को रात्रि भोजन, चतुर्दशी को अयाचित तथा अमावस्या को उपवास करके प्रतिपदा को पारण करना चाहिए.

- अमावस्या को एक बांस की टोकरी (Bamboo Basket) में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा ब्रह्मसावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की प्रतिमा स्थापित कर वट के समीप यथा विधि पूजन (Worship) करना चाहिए. साथ ही यम का भी पूजन करना चाहिए.

- पूजन में स्त्रियां वट की पूजा करती हैं तथा उसके मूल को जल से सींचती हैं. वट की परिक्रमा करते समय 108 बार या यथा शक्ति सूत लपेटा जाता है. 'नमो वैवस्वताय' इस मंत्र से वट वृक्ष की प्रदक्षिणा करनी चाहिए. 'अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥' इस मंत्र से सावित्री को अर्घ्य देना चाहिए वट वृक्ष का सिंचन करते हुए निम्न प्रार्थना करनी चाहिए.
क्या-क्या वस्तुएं दी जाती हैं?
- वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः। यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले॥ तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा॥ चने पर रुपया रखकर बायने के रूप में अपनी सास को देकर आशीर्वाद लिया जाता है.

- सौभाग्य पिटारी पूजा सामग्री किसी योग्य ब्राह्मण (Brahmin) को दी जाती है. सिंदूर, दर्पण, मौली (नाल), काजल, मेहंदी, चूड़ी, माथे की बिंदी, हिंगुल, साड़ी, स्वर्णाभूषण इत्यादि वस्तुएं एक बांस की टोकरी में रखकर दी जाती हैं.

- यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है. सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है. कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं सावित्री-सत्यवान (Savitri-Satyavan) की पुण्य कथा का श्रवण करती हैं.