करवा चौथ व्रत कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर, बृहस्पतिवार को रखा जाएगा। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस दिन महिलाएं संपूर्ण शृंगार के साथ अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जल व्रत रखती हैं और चांद निकलने पर जल ग्रहण कर उपवास तोड़ती हैं। करवा चौथ के दिन धातु के करवा का पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। यदि आपके पास धातु का करवा उपलब्ध नहीं है तो आप मिट्टी के करवा की पूजा का भी विधान है।

करवा चौथ पूजा मुहूर्त

चतुर्थी तिथि शुरू - 13 अक्टूबर को रात 01 बजकर 58 मिनट
चतुर्थी तिथि समाप्त - 14 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 07 मिनट पर
पूजा मुहूर्त: शाम 6 बजकर 01 मिनट से 07 बजकर 15 मिनट तक
चांद निकलने का समय: रात 8 बजकर 10 मिनट पर

करवा चौथ व्रत विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की परंपरा के अनुसार सरगी आदि ग्रहण करें। स्नानादि करने के पश्चात निर्जल व्रत का संकल्प करें। शाम के समय तुलसी के पास बैठकर दीपक प्रज्वलित कर करवाचौथ की कथा सुनें। चंद्रोदय से पहले ही एक थाली में धूप-दीप, रोली, पुष्प, फल, मिष्ठान आदि रख लें। एक लोटे में अर्घ्य देने के लिए जल भर लें। मिट्टी के बने करवा में चावल या फिर चिउड़ा आदि भरकर उसमें दक्षिणा के रुप में कुछ पैसे रख दें। एक थाली में शृंगार का सामान भी रख लें।

चंद्र दर्शन कर पूजन आरंभ करें। सभी देवी-देवताओं का तिलक करके फल-फूल मिष्ठान आदि अर्पित करें। शृंगार के सभी सामान को भी पूजा में रखें और टीका करें। अब चंद्र देव को जल का अर्घ्य दें। छलनी में दीप जलाकर चंद्र दर्शन करें, अब छलनी से अपने पति के दर्शन करें। इसके बाद पति के हाथों से जल पीकर व्रत का पारण करें। अंत में शृंगार की सामाग्री और करवा को अपनी सास या फिर किसी सुहागिन स्त्री को दें।