"मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ" का लोकार्पण भोपाल में
दार्शनिक चिन्तन का काव्यानुवाद हैं डाॅ. आचार्य के गीत : मनोज श्रीवास्तव
भोपाल । "डाॅ. राम वल्लभ आचार्य के गीत भारतीय दार्शनिक चिन्तन का सरल तरल भाषा में किया गया काव्यानुवाद है । उनमें आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और वल्लभाचार्य के अद्वैत दर्शन का सार समाहित है" यह बात साहित्य मनीषी मनोज श्रीवास्तव ने चर्चित कवि डाॅ. राम वल्लभ आचार्य के काव्य संकलन "मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ" के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कही । आपने कहा कि वर्तमान समय में इन गीतों को दृश्य श्रव्य माध्यम से समाज में पहुँचा कर जन जागृति लाई जा सकती है । हिन्दी भवन में मध्यप्रदेश लेखक संघ एवं राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ गीतकार यतीन्द्र नाथ राही का कहना था कि भाव, भाषा एवं छांदिक दृष्टि से खरे होने के कारण ही डाॅ. आचार्य के गीतों को जहाँ हरिॐशरण, अनूप जलोटा सहित अनेक गायकों ने स्वर दिये हैं वहीं साध्वी ऋतम्भरा सहित अनेक भागवताचार्य अपने कार्यक्रमों में उन्हें गाते गवाते हैं । सारस्वत अतिथि डाॅ. सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी ने कहा कि इस संकलन के गीतों में गीता और उपनिषदों के सूत्रों की झलक मिलती है । इनमें ज्ञान वैराग्य भक्ति और समर्पण का अनुपम तादात्म्य है । वेद विद्वान प्रभु दयाल मिश्र का कहना था कि इन गीतों में वेदों के अनेक सूक्तों और ऋचाओं की कल्याणमयी भावना के दर्शन होते हैं । डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने संकलन के चार गीत प्रस्तुत किये जिनकी स्थायी पंक्तियाँ थीं -
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ फूँकते हो बज रही हूँ,
तुम मुझे जब तक धरे हो मैं अधर पर सज रही हूँ ।
एक है कर्ता वही तो हम सभी बस उपकरण हैं,
एक चेतन तत्व है वह और हम सब अभिकरण हैं ।
कोटि कोटि सूर्यों के दीपक करते जिसका नीराजन,
कौन कर सका उस समष्टि के महा देवता का वर्णन ।
मिट रहा हूँ फिर बनाने के लिये ,
जा रहा हूँ लौट आने के लिये ।
प्रारंभ में सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद डाॅ. जवाहर कर्नावट ने स्वागत वक्तव्य दिया तथा अंत में ऋषि श्रंगारी ने आभार प्रदर्शन किया । संचालन मनोज जैन मधुर ने किया । इस अवसर पर राजधानी के महनीय साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
-राजेन्द्र गट्टानी
प्रादेशिक मंत्री मध्यप्रदेश लेखक संघ