बोलियों को जिंदा रखेंगे तो जिंदा रहेगी परंपरा - डाॅ. विकास दवे

इंदौर। बोलियां हमारी परंपरा की वाहक हैं। बोलियों को जिंदा रखेंगे तो परंपरा जिंदा रहेगी।  यह बात साहित्य अकादमी,  (म.प्र.) के निदेशक डाॅ. विकास दवे ने  पुस्तक - मालवी-हिन्दी लघुकथाएं के लोकार्पण समारोह में अध्यक्षीय उद्बोधन में कही। यह पुस्तक वरिष्ठ लघुकथाकार डाॅ. योगेंद्रनाथ शुक्ल द्वारा हिन्दी में लिखी गई लघुकथाओं के वरिष्ठ मालवी लेखिका हेमलता शर्मा भोली बेन द्वारा किए मालवी अनुवाद पर आधारित है।

यह समारोह अपणो मालवो के बैनर तले  मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में शनिवार शाम हुआ। मुख्य अतिथि डाॅ. शिव चौरसिया (उज्जैन) ने इस मौके पर कहा कि मालवी साहित्यानुवाद का इतिहास कोई एक हजार साल पुराना है।  लघुकथा विधा का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें वरिष्ठ लघुकथाकार डाॅ. योगेंद्रनाथ शुक्ल, इंदौर  के योगदान का उल्लेख निश्चित तौर पर होगा।


विशेष अतिथि वरिष्ठ संस्कृति कर्मी श्री संजय पटेल ने कहा कि लघु कथाओं के मालवी बोली में अनुवाद का यह जो प्रयास सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन ने  किया है यह  मालवी को नया आयाम देगा क्योंकि बोली को गद्य विद्या से ऊंचाई मिलती है।
समारोह में डाॅ.योगेंद्र नाथ शुक्ल ने अपनी हिंदी लघुकथाओं सहमति, ईर्ष्या, तोहफा,बेइंसाफी का पाठ  किया और  भोली बेन ने इन्हीं का मालवी अनुवाद वाचन किया। श्री जयेश के . भेराजी को मालवी सेवक सम्मान से सम्मानित किया गया। संचालन श्री मुकेश तिवारी और श्रीमती अर्पणा  तिवारी ने किया। आभार संस्था सचिव श्री अभिमन्यु शर्मा ने माना। समारोह में साहित्य, कला, संस्कृति और शिक्षा जगत के अनेक वरिष्ठ जन के साथ ही बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

 - अभिमन्यु शर्मा सचिव,अपणो मालवो