बक्षीबाग कालोनी में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मना भगवान की बाल लीलाओं का उत्सव  

इंदौर4 अक्टूबर।  परमात्मा का दूसरा नाम आनंद है। सच्चे भक्त को परमात्मा के स्मरण मात्र से ही आनंद की अनुभूति होती है। भगवान की लीलाओं में प्राणी मात्र के प्रति कल्याण का ही भाव होता है। भगवान की लीलाओं को समझ पाना स्वयं ब्रह्माजी के लिए भी मुश्किल काम था, फिर हम तो साधारण मानव है। संसार की सभी गतिविधियां हमें बाहर से जोड़ती है, लेकिन हमारे धर्मशास्त्र हमें अंदर से जोड़ते हैं। खुद से खुद को जोड़ने का काम करते हैं हमारे धर्म ग्रंथ। मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति अपने कर्मों का समर्पण कर देंगे तो हमारे जीवन में भी पवित्रता और निर्मलता आ जाएगी।

            ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. शुकदेव महाराज के, जो उन्होंने बक्षीबाग कालोनी में चल रहे श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में   भगवान की बाल लीलाओं, गोवर्धन पर्वत एवं 56 भोग, श्रृंगार दर्शन की व्याख्या करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। आज कथा प्रसंगानुसार गोवर्धन पर्वत की झांकी सजाकर भगवान को छप्पन भोग समर्पित किए गए। महिलाओं ने भजनों पर नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। कथा शुभारंभ के पूर्व  कथा शुभारंभ के पूर्व प.पू. अमृतफले महाराज के सानिध्य में ठा. ओमप्रकाशसिंह पंवार, कुंवर सत्यमसिंह गोल्डी  के साथ मालासिंह ठाकुर, के.के. गोयल,  भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष गंगा पांडे, एआईसीसी के अनुरोध जैन, पार्षद राजू भदौरिया आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। संयोजक कुंवर सत्यमसिंह गोल्डी के अनुसार कथा में  गुरुवार, 5 अक्टूबर को रुक्मणी विवाह  तथा  शुक्रवार को सुदामा चरित्र के साथ कथा का विराम होगा। 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजे से यज्ञ-हवन एवं पूर्णाहुति के आयोजन होंगे। कार्यक्रम सभी धर्मनिष्ठ भक्तों के लिए खुला है। कथा प्रतिदिन दोपहर 2.30 से 5.30 बजे तक होगी।

पं. शुकदेव महाराज ने कहा कि भागवत में जो कुछ भी है वह सब हमारे जीवन का ही हिस्सा है। भागवत कथा तो है ही, हम सबके जीवन की व्यथा भी है। जैसे भगवान के जीवन में अविद्या रूपी पूतना आई, वैसे ही हमारे जीवन में भी पूतना और अघासुर, बकासुर जैसी दुष्प्रवृत्तियां आती रहती है। अविद्या के नाश होने पर ही हमारे जीवन से दुखों का खात्मा हो सकता है। मन, वचन और कर्म से हम जब तक भगवान के प्रति समर्पित नहीं होंगे, हमारा जीवन भी सार्थक नहीं बनेगा।