मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक लोकभाषा गोष्ठी
जिस तरह हमें माँ प्रिय है वैसे ही मातृ बोलियाँ भी प्रिय होना चाहिए - किशन तिवारी
भोपाल । "जिस तरह हमें माँ सबसे अधिक प्रिय है उसी तरह अपनी मातृ बोलियाँ भी प्रिय होना चाहिये । लोक भाषाओं को समृद्ध करने हेतु हमें हिन्दी से आगे जाकर सृजन करना होगा" - यह कहना था वरिष्ठ बुन्देली कवि किशन तिवारी का जो मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक लोकभाषा गोष्ठी के मुख्य अतिथि थे । कार्यक्रम अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा. राम वल्लभ आचार्य ने कहा कि जब तक लोकभाषायें जीवित रहेंगी तब तक हमारी परम्परायें भी जीवित रहेंगी। अतः इन्हें बचाना आवश्यक है । सारस्वत अतिथि प्रभु दयाल मिश्र का कहना था कि आधुनिकता की होड़ में समाज में अपसंसकृति बढ़ रही है जिसका प्रतिकार हम लोकभाषाओं के माध्यम से ही कर सकते हैं ।
गोष्ठी में सर्वश्री श्री दीपक चाकरे, राजेश रावल 'सुशील', डाॅ. देवदत्त द्विवेदी, प्रमोद मिश्रा, अशोक कुमार धमेनियाँ, अशोक चन्द्र दुबे 'अशोक' एवं श्रीमती पूर्णिमा चतुर्वेदी तथा श्रीमती आशा पाण्डेय ने अपनी सरस रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी का संचालन डाॅ. प्रीति प्रवीण खरे एवं अशोक धमेनियाँ ने, अतिथियों का स्वागत राजेन्द्र गट्टानी ने तथा आभार प्रदर्शन सुनील चतुर्वेदी ने किया ।
किसने क्या पढ़ा -
बुन्देली -
अशोक कुमार धमेनियाँ, भोपाल
बुंदेली भाषा धरती की काँ लों करों बढ़ाई है,
इत बैनन के काजें हमनें अपनी मुढ़ी नवाई है।"
आशा पाण्डेय, ग्वालियर
बिन्नू बिन घर हो ग ओ खाली ।
परसो लग र ओ बिना नोन को,
बिन बिलियन की थाली ।।
डाॅ. देवदत्त द्विवेदी 'सरस', छतरपुर
बात बे मन की बढ़ा रय काय खों,
धार पे पानी चढ़ा रय काय खों ।
प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़
का कै रय सरकार ने का करो ?
बीस की पिसी फ्री में द इ, तोऊ मन नी भरो ।
मलवी -
राजेश रावल 'सुशील', उज्जैन
म्हारा हिवड़ा की हूर, अ ई जा पास मति रे दूर,
म्हारे मती करे मजबूर म्हारी गोरणी !
निमाड़ी -
अशोक चन्द्र दुबे 'अशोक, भोपाल
सोला सिण्गार करि फिरs लाड़ी,
असी भारत मs चमकs निमाड़ी ।
दीपक चाकरे, खंडवा -
खेती करणो हुई मँहगी, आमदनी मs होय घाटो ।
चौकी नs सी मs बावणू टुल्ही नs सी करणूं वाटा ।
पूर्णिमा चतुर्वेदी, भोपाल ने निमाड़ी वारता "काम की कमला" का वाचन किया ।
रिपोर्ट -डाॅ. प्रीति प्रवीण खरे
प्रादेशिक संयुक्त मंत्री