लघुकथा - जिंदगी की सीख प्यार से..
"दिल जीतने का रास्ता! पेट से जाता जो बहुत काम आता है।",
शादी के बाद ससुराल में जाने पर सासूबाई का सबसे पहला शब्द यही रहता है। अब पुताऊ आ गई। अब रसोई से मेरी छूट्टी।
यह सुन अच्छा भी लगता कि ससुराल में सभी को बहु के हाथ का भोजन अच्छा लगता है।
खाने में कोई शिकायत नहीं करता। और सासु-माँ को भी सुकून और विश्वास रहता ही होगा, तभी तो बेफिक्र होकर सारी रसोई एक परायी के हाथों में दे देती है।
दे! भी क्यों, न नानी माँ ने जो बातों-बातों में रसोई के सारे गुण और काम करने के तौर-तरीकों जो सिखाया है।
बेटा! ले दो रोटी का आटा तो लगा दें।
ले! ये साग - सब्जी सुधार ले।
कभी खुद के साथ बैठा कर तो कभी अकेले से...
जा चौराहे से दुध ले आ।
तो कभी सब्जी।
तो कभी घर का राशन-पानी,
श्राद्ध हो या तीज त्यौहारों की तैयारी ।
सभी में बेटा - बेटा बोल कब इतना कुछ सीखा दिया। खुद को भी पता नहीं चला? कि कब गृहस्थी के वो सारे खेल रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा बन गए।
हम होशियार हो गए। कभी भी कहीं भी हर जिम्मेदारी में निपूर्ण हो लिये।
रोटी गोल, व खीर में मीठ घूल गई।
ससुराल में सबके दिलों में राज कर लिया।
क्योंकि! दिल जीतने का रास्ता पेट से ही गुजरता है।
ओर ये सीख नानी माँ ने बचपन से कूट-कूट कर जो भरी (सिखाईं) हमें।
बड़े ही प्यार और दुलार से...
-निशा अमन झा बुधे
जयपुर राज.