"चिंतन एक दर्शन" का मर्म अनमोल है

 

"चिंतन एक दर्शन" विद्रूप होती वैचारिक मानसिकता के बीच उसे साहित्यिक धरातल पर रख अपने सारगर्भित विचारों को प्रकट करने का एक माध्यम है ! घृणा, वैमनस्यता, विवाद, प्रमाद और आपसी संघर्ष के बीच हमारी महान परंपराओं व सांस्कृतिक विरासत का सहोदर, जब  मृगतृष्णा बन आत्म शांति की कस्तूरी को ढूंढ रहा है, तो वहीं दूसरी और सांसारिक जीवन में धर्म और अधर्म के मध्य भेद को मिटाने वाली महीन रेखा अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रही है। यहां इन्हीं संस्कारों व संस्कृति के नैतिक आवरण के विभिन्न पहलुओं को उकेरती मेरे बाल सखा श्री देवेंद्रसिंह सिसौदिया की पुस्तक ,चिंतन-कृति पाठकगणों के समक्ष अपने सारगर्भित विचारों की गुथी माला के रूप में प्रस्तुत हुई है । जिसमें वास्तव में लेखक ने अपनी पूरी निष्ठा के साथ यह दर्शाने का प्रयास किया है, कि सांसारिक भागमभाग और महत्वाकांक्षाओं से भरी स्वार्थ परख जीवनशैली में यदि मानव के पास नैतिकता का थोड़ा सा भी अंश शेष है, तथा उसमें आत्मचिंतन व मनन का दृष्टिकोण है तो निश्चित ही उसका जीवन ईश्वर द्वारा प्रदत्त ,इस सोचने व समझने वाली शक्ति के उपयोग से उसे सफल बना सकता है। इसी कड़ी में लेखक आगे कहते है  कि परिवार ,समाज व देश में स्थापित आदर्शों का यदि वह किंचित मात्र भी अनुसरण कर सके, तो उसे वह स्वतः ही आत्मसंयम के साथ ,विश्वास कर, आत्मविश्लेषण से निश्चित ही आत्मसंतुष्टि व ज्ञान की अनुभूति को पा सकता है ।इतना ही नहीं बल्कि वह अपने इसी आत्मबल से आत्मनिर्भर होकर दृढ़ संकल्प के साथ होने वाले भावी आत्माघात के खतरे से बच भी सकता है। बस  उसे केवल अपने जीवन की प्राथमिकताओं में कर्तव्य, अधिकार व दायित्वों की पहचान का लक्ष्य निर्धारित करना होगा ।हालांकि इस नवाचार में उसे अपने सम्मान, सत्य के प्रति अडिग होकर, श्रद्धा व आस्था के पहलुओं से परे हटकर धोखे से मिली हुई हार जीत और उसमें छिपी हुई संवेदनाओं के मर्म को स्पष्टता के साथ स्वीकार करने की समझ विकसित करनी होगी, साथ ही दीपक की जलती हुई लौ की भांति रोशनी का सकारात्मक दृष्टिकोण जो भूत, वर्तमान तथा भविष्य में आने वाले अच्छे बुरे परिणामों को ईमानदारी से स्वीकार करने की तत्परता को भी दर्शाता हो वह आत्मसात करना होगा। हालांकि लिव इन रिलेशनशिप जैसे आधुनिक विचारों का हमारे महान सांस्कृतिक विचारधारा से कोई मेल तो नहीं हो सकता किंतु इस बदलते परिवेश की धरातलीय सच्चाई को नकारा भी नहीं जा सकता? फिर भी लेखक ने अंत में वीर हनुमान और श्रवण कुमार की भक्ति, शक्ति,त्याग व समर्पण को अपनी कलम से उकेरने का जो साहस दर्शाया है, वह सराहनीय है ।  कुल मिलाकर प्रस्तुत कृति "चिंतन एक दर्शन" का बाजार मूल्य रूपए 250 की किमत पर  उपलब्धता अवश्य है, किंतु इसकी पृष्ठभूमि में छिपा हुआ चिंतन का मर्म मूल्यवान ही नहीं अनमोल भी है जिसमें लेखक ने अपने मूल स्वभाव व्यंग्यकार की शैली से परे हटकर पहली बार दार्शनिकता से ओतप्रोत लगभग हर पहलू को छूने का प्रयास किया है। प्रायः भावना ,संवेदना और वैचारिक दृष्टिकोण को रेखांकित करना साहित्य का मूल चरित्र होता है, जिसे मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी ने अपनी अनुदान कृती योजना के रूप में चुनकर इस लेखक की कलम को ओजस्विता प्रदान करने का जो साहस दर्शाया है वह प्रशंसनीय है। यह कदम श्रेष्ठ साहित्य के  लेखन में नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित कर उन्हें उबरने में मदद करेगा इसके लिए वह साधुवाद का पात्र है। पुस्तक अमेजान पर भी उपलब्ध हैं, आज की पीढी को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। 

समीक्षक -देवेंद्र काशिव, 
धार मध्यप्रदेश

पुस्तक - चिंतन एक दर्शन 

लेखक - देवेंद्रसिंह सिसौदिया 

मूल्य -   250 रु.

प्रकाशक - बोधि प्रकाशन जयपुर