इंदौर1 अक्टूबर। गांधी आश्रमों और गांधीवादियों ने गांधीजी बाहर निकलते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि गांधीजी बहुत पीछे छूट गए हैं। जैसे हम अपने मेहमानों को घर के ड्राइंग रूम में बिठाते हैं और बड़े बुजुर्गों को कहीं पिछवाड़े बैठने के लिए भेज देते हैं, कुछ वैसी ही स्थिति गांधीजी की भी हो गई है। देश में बोलने की आजादी के साथ ही विरोध के स्वर सुनने की क्षमता भी खत्म हो रही है। टीवी और प्रिंट मीडिया भी सच्चाई नहीं बता पा रहे हैं। लगता है कि गांधीजी हमारे जीवन से निकलकर फिर  समाधि में चले गए हैं।

            ये खरे-खरे विचार हैं वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग के, जो उन्होंने आज सुबह गांधी जयंती की पूर्व बेला में संस्था सेवा सुरभि द्वारा दुआ सभागृह में ‘बेसुरे होते समय में महात्मा गांधी की बोली –बानी ’ विषय पर आयोजित अपने व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। व्याख्यान का शुभारंभ मुख्य अतिथि समाजसेवी भरत मोदी ने अभिभाषक अनिल त्रिवेदी, कुमार सिद्धार्थ, अनिल गोयल एवं  श्रवण गर्ग के साथ दीप प्रज्ज्वलन कर किया। अतिथि स्वागत मोहन अग्रवाल एवं अनिल मंगल ने किया। विषय प्रवर्तन एवं संचालन संजय पटेल ने किया। स्मृति चिन्ह पर्यावरणविद ओ.पी. जोशी ने भेंट किया। आभार माना कुमार सिद्धार्थ ने। इस अवसर पर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रेणु पंत, डॉ. ललितमोहन पंत, रामेश्वर गुप्ता,  अजीतसिंह नारंग, राजेश जैन, अशोक कोठारी, डॉ. अनिल भराणी, संस्था के ओमप्रकाश नरेड़ा सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

            पत्रकार श्रवण गर्ग ने कहा कि अभी जिस तरह के हालात हैं, उसे देखते हुए लगता है कि आने वाला समय ऐसा भी आ सकता है कि जब देश में लोकतंत्र समाप्त हो जाए। इजराइल की तरह यहां के नेताओं पर भी सरकार सेटेलाइट से नियंत्रण रखे या उनके मोबाईल फोन चुपके से रिकार्ड करे। आज देश के अधिकांश विपक्षी नेता सरकार के  निशाने पर हैं। हालात ऐसे ही बन गए हैं कि अखबार और टीवी भी कुछ नहीं बता रहे। जनता की समस्याओं को सही ढंग से नहीं बताया जा रहा है। कोरोना ने देश को दो संप्रदायों में बांटकर रख दिया। सरकारें लोगों को मुफ्त चीजें देकर उनके वोट खऱीद रही है। राजस्थान में सवा करोड़ महिलाओं को फोन, तेलंगाना में महिलाओं के लिए मुफ्त में बस यात्रा और केन्द्र सरकार 80 प्रतिशत लोगों को मुफ्त में अनाज बांटकर अपने-अपने वोट बैंक पका रही है। देश के आम आदमी की हालत बुखार में तपते उस आदमी जैसी हो रही है, जिसका शरीर तो तप रहा है, लेकिन हाथ ठंडे हैं। जांच कराएं तो पता चलता है कि उसे कई बीमारियां हो चुकी हैं। आज समाज की भी यही स्थिति बन गई है। मंदिरों में  असली की जगह नकली सोना और असली मूर्तियों की जगह नकली मूर्तियां रखी जा रही हैं। फिर भी हम उन्हीं की पूजा कर रहे हैं। अंधों का हाथी किसी भी रूप और आकार का हो सकता है, इसलिए वास्तविक स्वरूप किसी को पता नहीं है। आम आदमी रात को शहर से बाहर निकलने में डरता है। हम अपने ही शहर में अजनबी हो गए हैं। दो लोग लड़ रहे हों तो हम उनके बीच इसलिए बोलने का सहस नहीं कर सकते कि कहीं हमारा नुकसान न हो जाए। इस तरह ‘बेसुरे होते समय में महात्मा गांधी की बोली –बानी ’ धीरे-धीरे हमारे लिए अनजानी और अजनबी होती जा रही है।

            व्याख्यान के पूर्व डॉ. रचना पौराणिक शर्मा ने भक्ति संगीत की प्रस्तुति देते हुए वैष्णवजन सहित बापू को प्रिय तीन मधुर भजनों की प्रस्तुति भी दी। तबले पर संगत कपिल पौराणिक ने की। कार्यक्रम में गांधीवादी संस्थाओं से जुड़े कार्यकर्ता भी मौजूद थे।