भोपाल । हमेशा अपनी निधि बढ़ाने की मांग करने वाले माननीयों द्वारा मौजूदा दौर में मिलने वाली राशि हर साल आधी अधूरी ही खर्च की जाती है। अब जग चुनावी साल है, लेकिन अब भी उन्हें अपनी निधि में मिली राशि खर्च करने की चिंता नहीं है। शायद सही वजह है कि इस वित्त वर्ष के दसे माह में भी हमारे माननीय अपनी निधि का आधा पैसा भी खर्च नहीं कर पाए हैं। ऐसा नही है कि इस तरह की स्थिति किसी एक दल के सदस्यों की है, बल्कि लगभग सभी दलों के विधायकों की निधि की है। माना जा रहा है कि अब शेष बची हुई राशि को अब लैप्स होने से बचाने के लिए आनन-फानन में खर्च किया जाएगा, जिससे निधि के दुरुपयोग होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी वजह है विभागों को जब कामों के लिए इस निधि का पैसा मिलेगा तो उन पर उसे समय सीमा में खर्च करने की मजबूरी होगी। यह राशि भी अब चुनावी जोड़-तोड़ के हिसाब से खर्च की जाएगी। अगर सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में विधायकों को मिलने वाली निधि में से इस साल के दस माह मे महज 269 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं। खास बात यह है कि इस मामले में गैर आरक्षित विधायक अधिक कंजूस  बने हुए हैं। इसके उलट एससी और एसटी सीटों से चुनकर आने वाले विधायक जनता की भलाई के लिए इस मद से राशि खर्च करने में अधिक सक्रिय बने हुए हैं। इसकी वजह मानी जा रही है भाजपा संगठन और पार्टी की सरकार का  आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अधिक फोकस किया जाना। चुनावी साल होने की वजह से अब भाजपा व कांग्रेस दोनों का आरक्षित सीटों पर अधिक फोकस है, जिसकी वजह से ऐसे क्षेत्रों में बीजेपी के साथ कांग्रेस के विधायक भी अपने स्तर पर सक्रिय हैं। इसमें शहडोल, डिंडोरी, मंडला, अलीराजपुर और झाबुआ जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र शामिल हैं, और अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में भिंड, मुरैना, बहुल क्षेत्रों में भिंड, मुरैना, टीकमगढ़, रीवा और रायसेन शामिल है। हर साल इन विधायकों को 372.50 करोड़ रुपए मिलते है जिसमें से 369.14 करोड़ रुपए का बजट दिया गया। इसके विपरीत सामान्य कैटेगरी के एमएलए सिर्फ 162.53 करोड़ रुपए ही अपने क्षेत्र की जनता को विकास कार्यों के लिए दी गई है। इसी तरह एसटी कैटेगरी के विधायकों के लिए 117.50 करोड़ रुपए हर वित्त वर्ष में दिए जाते हैं। जिसमें से 61.57 करोड़ रुपए ही इनके द्वारा खर्च किए गए हैं। एससी कैटेगरी के विधायकों को 87.50 करोड़ रुपए मिलते हैं जिसमें से 45 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में एसटी की 47 और एससी कैटेगरी की 35 सीटें आरक्षित हैं। हैं। बाकी विधानसभा क्षेत्र सामान्य कैटेगरी के लिए आरक्षित हैं।

यह है योजना
विधायक क्षेत्र विकास निधि योजना को वर्ष 1999- 2000 में आरम्भ किया गया है। यह योजना माननीय विधायकों को स्थानीय विकास के साथ प्रभावी ढंग से जोडऩे की दृष्टि से भी आरम्भ की गई है। यह योजना राज्य सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से विकास कार्यों के विकेन्द्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति से भी प्रेरित है ।

ऐसा है खर्च का गणित
क्षेत्र विधायक निधि की राशि खर्च करने के लिए विधायकों को कुल 577.50 करोड़ रुपए मिलते हैं। चालू वित्त वर्ष में अब तक 574.10 करोड़ रुपए का बजट जारी किया जा चुका है। इसमें से महज 269.10 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं। अब इस वित्त वर्ष की समाप्ति के 65 दिन ही शेष बचे हैं। अगर देखें तो सामान्य कैटेगरी के विधायक 206.61 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं कर सके हैं। ऐसे में प्रदेश के सभी 230 विधायकों को मिलने वाले विधायक निधि के बजट का पचास फीसदी हिस्सा भी अब तक जनता के हित में खर्च नहीं किया गया है।