भक्त और भगवान को जोड़ने का सेतु है भागवत 
शोभायात्रा के साथ उषाराजे परिसर में श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज द्वारा भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह का शुभारंभ

इंदौर, 20 सितम्बर। भागवत केवल कथा नहीं, जीवन की व्यथाओं को दूर करने का सबसे सरल माध्यम है। दुनिया में एक मात्र भागवत ही ऐसी रचना है, जो नित्य नूतन अनुभूति प्रदान करती है। भक्त और भगवान को जोड़ने का काम भागवत रूपी सेतु से ही संभव है। हजारों बार सुनने का बाद भी यदि हर बार नित्य नूतन अनुभूति कोई रचना दे सकती है तो वह भागवत ही है। भागवत केवल कथा नहीं, सदगुणों का ऐसा खजाना है, जिसमें जितना गहरे उतरेंगे, उतना ही ज्यादा प्राप्त करेंगे। 
    ये प्रेरक  विचार हैं भागताचार्य  पं. आयुष्य दाधिच के, जो उन्होंने  उषा नगर स्थित उषा राजे परिसर में श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह के शुभारंभ सत्र में व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व उषा नगर एक्सटेंशन स्थित अश्विन-दिनेश कश्यप के निवास से शोभायात्रा निकाली गई। बैंडबाजों, गरबा मंडली एवं भजनों पर नाचते-गाते सैकड़ों समाजबंधु शोभायात्रा में शामिल हुए। मार्ग में अनेक स्थानों पर  शोभायात्रा, भागवतजी एवं आचार्य पं. आयुष्य दाधिच का स्वागत किया गया। कथा स्थल उषा राजे परिसर पहुंचने के बाद आयोजन समिति की ओर से प्रमुख यजमान विमल हेतावल, अशोक हेतावल, धर्मेन्द्र गुप्ता, बृजमोहन गुप्ता, गिरीश गुप्ता,  सीए महेन्द्र हेतावल, सीए प्रकाश गुप्ता, प्रवीण कश्यप, दिलीप गुप्ता, सतीश हेतावल  आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। समिति के प्रमुख संरक्षक प्रहलाद मेहता, समाज के अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन ने बताया कि  कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के लिए समुचित प्रबंध किए गए हैं। कथा में 21 सितम्बर को दोपहर 2 से सायं 6 बजे तक बालक ध्रुव एवं भरत चरित्र के प्रसंग होंगे। 
    विद्वान वक्ता ने कहा कि भादौ मास में भागवत कथा का आयोजन करना और सुनना, दोनों ही अत्यंत पुण्यकारी माने गए हैं। कान और आंख के माध्यम से भगवान की वाणी का अपने अंतर्मन तक प्रवेश का यह दिव्य आयोजन हमारे विचारों और संस्कारों को परिष्कृत कर हमें मोक्ष की मंजिल की ओर प्रवृत्त करता है। भागवत स्वयं भगवान के श्रीमुख से प्रस्फुटित हुआ ऐसा दिव्य निर्झर है, जो हमारे जीवन को सदगुणों से श्रृंगारित बनाता है। भागवत को विद्वानों  ने कल्प वृक्ष भी कहा है, जिसकी छाया में यदि आप भूले से भी चले जाएंगे तो कल्याण ही होगा।