भोपाल ।  भारतीय संस्कृति मिल-जुलकर रहना सिखाती है। सनातन धर्म से मिले संस्कार एक अच्छे व्यक्ति नहीं, बल्कि व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा कहीं से भी भारत की संस्कृति की अवधारणा के अनुकूल नहीं है। इसके लिए कानून की वकालत करना भारतीय संस्कृति के विपरीत है। एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए संस्कारों का रक्षण जरूरी है। संस्कारों से ही संस्कृति की रक्षा की जा सकती है। यह सद्विचार प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने टीटी नगर दशहरा मैदान में चल रही भागवत कथा के दौरान व्यक्त किए। उन्‍होंने कहा कि सनातन धर्म एक वटवृक्ष है, लेकिन दिक्कत यह है कि हर व्यक्ति अपनी शाखा बचाने में लगा है। जाति और पंथ से ऊपर उठकर हर व्यक्ति को पेड़ की जड़ में जल देने की जरूरत है। हिंदू, जैन, बौद्ध सब एक ही वृक्ष की शाखा है। सनातन धर्म के मानने वालों को चादर और फादर से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि पिता ही परमात्मा होता है, जैसे पिता एक होता है वैसे ही परमात्मा भी एक होता है। उन्होंने साफ कहा कि वह किसी के विरोधी नहीं हैं। जो व्यक्ति जिस धर्म में जन्मा है उसे अपने धर्म का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों का रक्षण बहुत जरूरी है। संस्कारों से ही संस्कृति की रक्षा की जा सकती है महाराज ने कहा कि भारत में लिव-इन रिलेशनशिप कानून की जरूरत नहीं थी। इसको लागू करना भारतीय संस्कृति के विपरीत है।

मेरे गिनियो न अपराध... पर झूमे श्रद्धालु

विश्व शांति सेवा समिति, एवं प्रदेश भाजपा मंत्री राहुल कोठारी के तत्वावधान में चल रही कथा में विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद महाराजश्री ने "मेरे गिनियो न अपराध, लाडली श्री राधे" भजन गाया तो श्रद्धालु झूम उठे। उन्‍होंने कहा कि यदि आप भागवत कथा से कुछ पाना चाहते हैं तो आपको सातों दिन कथा सुननी चाहिए। कथा श्रवण के बाद मनन ज़रूर करना चाहिए।

राजा परीक्षित के कारण ही पृथ्वी पर भागवत कथा के श्रवण का सौभाग्य मिला

देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने बताया कि राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डसने से हो जाएंगी। राजा परीक्षित ने उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। साथ ही अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। तभी वहां भगवान शुकदेवजी पधारे। उन्‍होंने कहा कि राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है, उसको श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। जो जीव सात दिन में संपूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। इसके बाद शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को कथा सुनार्इ। राजा परीक्षित के कारण ही भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री राम एवं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का वृतांत सुनाया जाएगा।