मीठी यादों की एक कत्थई दुकान...

कल जब शालू (छोटी बहन) ने कहा कि पान खाने की इच्छा हो रही है तो पान की दुकान पर जाने का सौभाग्य मिला ...

बचपन से ही बड़ी आकर्षण बिंदु रही है पान की दुकान ... तांबूल सदन, पान कार्नर, चौरसिया पान सदन जैसे नाम जहन में आज भी ताजे हैं।

बब्बू दादा का पान, रमेश सेठ का पान, भाभी का पान, भैया का पान , दादाजी का मगई बोलते ही पान वाले भैया अपने मेमोरी में से टेम्पलेट उठाते और पान का पत्ता, कत्था, चूना, सुपारी ( सिकी, बिना सिकी, कतरन, चिप्स) , सौंफ, लौंग, तंबाखू या बिना तंबाखू, खोपरा, गुलाब कतरी डालते थे, फिर बारी आती थी बहुत सारे कलर वाले डब्बों की जिनमे कई नंबर डाले होते थे, गुलकंद, चटनी पिपरमेंट, चमन बहार, उफ्फ न जाने क्या क्या , 1760 चीजों के बाद उसकी घड़ी करना और पूछना यहां खाओगे या बांध दूं???

पान वाले राजू भाई का पजामा कत्थई था या हो गया था यह तो पता नही पर सारे कपड़े कत्थई ही थे ... शानदार रेडियो या डेक पर लता और किशोर के गाने , खुशबू वाली अगरबत्ती/ धूप से माहौल बड़ा ही खुशनुमा और मर्दाना सा बना रहता था।

फिर बातें आआहाहा, राजनीति, रिजल्ट, करियर, शादी ब्याह, बाजार, कहानी किस्से, सट्टा, लाटरी, पार्टी, यात्रा सब कुछ अलग अलग ग्रुप आते तो बतियाते...

शाम को सभी का व्हाट्सएप ग्रुप फिजिकल फॉर्म में होता था भईया मोबाइल पर नही....

दोस्तों का अड्डा होती थी पान की दुकान, थकान उतारने की दवाई थी पान की दुकान...

खाना खाने के बाद पान की दुकान पर जाने का शगल, बाइक या स्पेशली बुलेट से शाम को एक चक्कर लगाने जाना पान की दुकान पर एक संस्कृति थी...कुछ लोगों को बैठक ही एक विशेष पान की दुकान पर होती थी।

सिगरेट वालों के अपने शगल, अलग अलग टाईप की सिगरेट, छोटे बच्चे पापा, चाचा, दादा के लिए लेने जाते सकुचाते, शरमाते और घबराते, मजदूर बीड़ी लेता और सेठ कैवेंडर्स/ विल्स...

पान की पीक से बचने के तरीके यहीं से सीखे जाते थे। थूकने के सलीके भी पान वाले सिखा देते थे।

गुटखे/ तंबाखू वाले अलग कैटेगरी के होते , हां लोग घर जाते जाते अपनी पत्नी या बई (मां) / बाउजी का पान ले जाते थे। उनके घर में, बुजुर्गों के पान के डब्बे का रॉ मैटीरियल भी यहीं से लाना होता था।

शादी के पान की बात निराली थी, फ्री का पान मतलब लॉटरी लग गई...दूल्हे का पान और दुल्हनिया का पान , चांदी का वर्क पहली बार पान पे ही देखा था मैने

एक बेहद अनोखा समाज या कहें दुनिया थी पान की दुकान की...अब भी दुकानें हैं पर वो बात नही।

ये गूगल थी, व्हाट्सएप थी, इंस्टा थी, ये जीपीएस भी थी, येलो पेजेस भी। ये रिव्युअर भी थे , लड़के लड़की को प्राईमा फेसी जानकारी , परिवार की रेटिंग यही पान वाले दिया करते थे...

हां बच्चों को सिगरेट कभी नहीं पीने देते थे...अब तो ड्रग्स देने से भी बाज नहीं आ रहे ।

नीचे पान की दुकान ऊपर गोरी का मकान....

आप का कौन सा पान था और कौन सी दुकान थी, बचपन, जवानी की याद वाली, बताइए जरूर ....

पैसे नही होते तो भी पान मिलता था, बनारसी, देहलवी, कानपुरी, मीठा, मगई

कटिंग या पूरा , गुलाब कतरी तो इनाम थी ....हेमा मालिनी कहते थे उसे ..

कत्थई आंखों वाली लड़की, चूना लगा दिया यहीं से निकले वाक्य हैं।

उफ्फ ये पान की दुकान , क्या आपको शौक है पान का??

–समीर शर्मा , इंदौर वाले