'चिंतन के गवाक्ष से' पुस्तक का विमोचन
संस्कृति राष्ट्र के जन-समुदाय की आत्मा होती है, भाषा साहित्य और कलाएं उसके माध्यम है - प्रो. डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा
रतलाम । संस्कृति किसी भी राष्ट्र के जन समुदाय की आत्मा होती है संस्कृति में यह भी उच्चतम चिंतन का मूर्त रूप है तो भाषा साहित्य और कलाएं उसके सशक्त माध्यम है । भारतीय चिंतन धारा में संस्कृति संकल्पना अत्यंत व्यापक है । हमारे यहां संस्कृति को पूर्णतया का पर्याय माना गया है । संस्कृति महज कल्चर नहीं है । इसकी अवधारणा कल्चर की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक और युक्तिसंगत है । इसमें पंरपरा, भाषा, साहित्य, नाट्य, कला और शिल्प से लेकर विज्ञान, मूल्य और दर्शन तक सब अंतनिर्हित हो जाते है । संस्कृति एक अखंड और सार्वभौमिक है किन्तु उसकी साधना के अलग-अलग मार्गो के रहते हुए वह अलग-अलग जानी समझी जाती है । इसी दृष्टि से भारतीय संस्कृति को संस्कृति की अनवरत यात्रा में भारतीय मार्ग के रूप में देखा जा सकता है । भारतीय संस्कृति अनेक शताब्दियों से विश्व संस्कृति के मूलाधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है । उक्त बात प्रो.डॉ.. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने साहित्यिक संस्था अनुभूति द्वारा आयोजित प्रो. डॉ. मोहन परमार की चौथी पुस्तक ''चिंतन के गवाक्ष से '' के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए।
प्रो. शर्मा ने आगे यह भी कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने सम्पूर्ण विश्व को केन्द्र में रखकर रामचरित मानस की रचना की है । जो संसार स्तर पर मान्य है। आपने कहा कि मैं संस्था अनुभूति के कार्यक्रम में उपस्थित होने से अभिभूत हूं । पुस्तक ''चिंतन के गवाक्ष से '' में संकलित लेखो, निबंधों में कई ज्ञात-अज्ञात पक्षों की शोधपूर्वक नवीन स्थापना की गई है जो प्रशंसनीय है । श्री शर्मा ने कई निबंधो की विशिष्टाओं को अपने उदबोधन में उदाहरण सहित प्रस्तुत की । यह पुस्तक नई पीढ़ी के लिए यह साहित्यिक दृष्टि से विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने कहा किं चितंन के गवाक्ष से पुस्तक के २७ लेखों, निबंधों में धर्म, दर्शन, वेदसाहित्य, संस्कृति के विभिन्न सोपानों का दिग्दर्शन होता है । यह पुस्तक साहित्य की दृष्टि से रोचक व पठनीय है । आपने आशा व्यक्त की है कि साहित्य के पाठक इसे तनमन्यता के साथ आत्मसात करेंगे ।
विशिष्ट अतिथि समाजसेवी श्री अनिल झालानी (चेयरमेन सृजन कॉलेज) ने कहा कि पुस्तक के कुछ लेखों, निबंधो में हमें भारतीय समाज, साहित्य, आध्यात्म, धर्म, ज्ञान, विज्ञान की सामाजिक चेतना का परिचय प्राप्त होता है जो महत्वपूर्ण है । आपने साहित्यकारों को परामर्श दिया कि नगर में साहित्यकारों का एक बड़ा संगठन निर्मित्त किया जाए जिसके आयोजन में साहित्य के विभिन्न पक्षों पर सकारात्मक चिंतन किया जाना चाहिए।
विशेष अतिथि श्री राधेश्याम परिहार जिलाध्यक्ष गुजराती सेन समाज एवं अनंत नारायण मंदिर सेवा समिति रतलाम ने कहा कि किताब के कुछ लेखों को मैंने देखा है जो हमें वर्तमान भागमभाग व यांत्रिक जीवन की आपाधापी में धर्म संस्कृति व आध्यात्म से जोडऩे की प्रेरणा देते है । विशेष अतिथि श्रीमती अनिता रजनीश परिहार (अध्यक्ष नगर परिषद नामली) ने कहा कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने चिंतन एवं तप तपस्या करके कई बार भगवान को धरती पर आकर उन्हें जन कल्याण के लिए वरदान देने के लिए बाध्य किया। भारतीय संस्कृतिहमें जीवन जीने की कला सिखाती है। हमें उसके अनुरूप जीवन ढालने का प्रयास करना चाहिए । इसी से हमारा जीवन सार्थक होगा ।
वरिष्ठ चिंतन मनीषी सुश्री शिवकांता भदौरिया ने प्रमुख समीक्षक वक्ता के रूप में कहा कि किताब के लेखों, निबंधों पर विद्वतापूर्वक सुक्ष्मता से विश्लेषण करते हुए कहा कि भारत की भूमि सदैव से ही चिंतन की पावन धरा रही है । हमारे वैद, धर्म ग्रं्रथ हमें जीवन में उस नैतिकता की दिशा में चलने के लिए प्रेरित करते है । चिंतन के गवाक्ष से पुस्तक अपने आप में साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध होगी ।
डॉ. शोभना तिवारी (निदेशक - डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान रतलाम) ने कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक संचालन करते हुए अपनी पुस्तक पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी में कहा कि डॉ. मोहन परमार की पुस्तक चिंतन के गवाक्ष से हिन्दी साहित्यक की अनुपम निधि है । पुस्तक के हर आलेख, निधन मैं साहित्य के मूलभूत पक्षों को उद्घाटित किया है और सम्पूर्ण साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करते हुए मानव मन के मनोवैज्ञानिक पक्षों को गंभीरता के साथ उकेरा गया है । डॉ. परमार इस पुस्तक के माध्यम से राम राज्य की संकल्पना को साकार रूप में देखते है ।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक श्री प्रणयेश जैन ने वर्तमान में साहित्य की दशा और दिशा की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि हमें रचना पाठ के उपरांत चिंतन कर आत्मावलोकन करना चाहिए । किन्तु वर्तमान में इसके उलट स्थिति है । जो हम सबके लिए चिंतनीय है ।
चिंतन के गवाक्ष से पुस्तक के लेखक प्रो. डॉ. मोहन परमार ने कहा कि सोरमंडल में २७ नक्षत्र है जिनका अपना-अपना महत्व है। उसी परमार इस विमोचित किताब में २७ लेखों, निबंधो का संकलन है । जिसके माध्यम से शाश्वत सनातन धर्म और साहित्य एवं सामाजिक सरोकारों के विभिन्न पक्षों पर व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। डा्रॅ. परमार ने आशा व्यक्त की है कि साहित्य के सुधिजन पाठक इसे सहज स्वीकार करेंगे।
प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई । संस्था के संरक्षक ठा. रमन सिंह सोलंकी ( एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट इंदौर) ने अपनी बात कहते हुए स्वागत उदबोधन दिया । इसके उपस्थित अतिथियों का परिचय डॉ. शोभन तिवारी, श्री पियुष जैन द्वारा दिया गया । इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ्र. प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा हिन्दी साहित्य भाषा के विकास में उल्लेखनीय योगदान देने पर संस्था द्वारा ''अनुभूति साहित्य सम्मान '' से अलंकृत किया गया एवं सम्मान पत्र का वाचन कवि गीतकार श्री शांतिलाल गोयल (शांतनु) द्वारा किया । इस मौके पर उपस्थित साहित्य संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा विशेष अतिथियों का शॉल भेंट कर सम्मान किया गया तथा पुस्तक मुद्रक श्री मुकेश शर्मा आवरण चित्र अक्षय संयोजन पवन श्री कम्प्युटर्स के श्री सतीश वर्मा का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत सर्वश्री अब्दुल सलाम खोकर, रामचन्द्र गेहलोत (अम्बर), सतीश जोशी, डॉ. कैप्टन एन.के. शाह, डॉ्र. प्रदीप सिंह राव, डॉ. खुशालसिंह पुरोहित, डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया, आशीष दशोत्तर, मयूर व्यास, अखिलेश चंद्र शर्मा (स्नेही), प्रकाश हेमावत, जुझारसिंह भाटी. नरेन्द्र सिंह पंवार, बाबुलाल परमार (रावटी), रमेश मनोहरा (जावरा), दिनेश बारोट (सरवन), श्रेणिक बाफना, श्रीमती प्रतिभा चांदनीवाला, ज्योत्सना निरंजनी, डॉ. दिनेश तिवारी, नीरज शुक्ला, श्यामसुंदर भाटी, जगदीश चौहान, गौरीशंकर खिंची, अशोक निगम, डा्रॅ. सरोज खरे, निसर्ग दुबे, सुरेश माथुर, रामप्रतापसिंह राठौर, रोड़ीराम प्रजापति (सैलाना) आदि के द्वारा किया गया । कार्यक्रम में रतलाम जिले के साहित्यकार व प्रबुद्धवर्ग बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में आभार संरक्षक श्री दिनेश जैन द्वारा माना गया ।
प्रेषक- मुकेश सोनी
सचिव - अनुभूति रतलाम