उषाराजे परिसर में श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज की मेजबानी में चल रहे भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में पं. दाधिच  के आशीर्वचन

इंदौर, 22 सितम्बर। सुख और दुख जीवन के क्रम हैं। हम जैसे कर्म करेंगे, फल भी वैसे ही मिलेंगे। सुख और दुख हमारे कर्मों का ही फल हैं। भगवान के शब्दकोष में सुख या दुख नाम का कोई शब्द है ही नहीं। गंगा और अन्य नदियां तभी तक पूजनीय हैं, जब तक वे अपने किनारों की मर्यादा में बहती हैं। किनारे छोड़ने पर कोई भी उन्हें नहीं पूजता, क्योंकि तब वही जीवन रेखा विनाश की बाढ़ लेकर आती है। मनुष्य के जीवन का भी यही सिद्धांत हैं। भगवान के अवतार सज्जनों के कल्याण और दुर्जनों के विनाश के लिए ही होते हैं। 
    प्रख्यात भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधिच ने श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज,  संस्था चित्तौड़ा सोशल ग्रुप, संस्था रंग तरंग एवं समाज की अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में उषानगर स्थित उषा राजे परिसर में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ प्रसंग पर समाज के पूर्व अध्यक्ष गोपीकृष्ण महाजन, सुरेश चंद्र गुप्ता, रमेशचंद्र महाजन, पूर्व न्यायाधीश राजेश गुप्ता, डॉ. कमल हेतावल,  विमल हेतावल, राजेन्द्र गुप्ता, दिलीप हेतावल, अजय गुप्ता, डॉ. गोपेश मेहता, किशोर गुप्ता एवं अन्य समाजबंधुओं ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में आचार्यश्री के श्रीमुख से मनोहारी भजनों की प्रस्तुति का सिलसिला आज भी जारी रहा। महिला मंडल की बहनों ने भजनों नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। संरक्षक प्रहलाद मेहता एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन तथा समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि उषा राजे परिसर पर कथा का यह अनुष्ठान 27 सितम्बर तक प्रतिदिन  दोपहर 2 से सायं 6 बजे तक चलेगा। कथा में आज नरसिंह अवतार एवं गजेन्द्र मोक्ष, 23 को राम एवं कृष्ण अवतार, 24 को बाल लीला, गोवर्धन पूजा, 25 को महारास लीला, फागोत्सव, कंस वध एवं रुक्मणी अवतार तथा मंगलवार, 26 सितम्बर  को  सुदामा चरित्र एवं गुरू गीता के बाद शोभायात्रा के साथ समापन होगा। समापन की शोभायात्रा 26 सितम्बर को शाम 7 बजे  कथा स्थल से द्रविड़ नगर स्थित श्रीमती किरण महेन्द्र गुप्ता के निवास तक जाएगी।बुधवार 27 सितम्बर को सुबह 8 बजे से यज्ञ-हवन के साथ पूर्णाहुति होगी।


    विद्वान वक्ता ने कहा कि भागवत वह कथा है, जो जन्म जन्मांतर के पुण्योदय के बाद नसीब होती है। स्वयं भगवान के श्रीमुख से जिस ग्रंथ की रचना हुई हो वह कालजयी ग्रंथ ही होता है। भागवत को चाहे कल्पवृक्ष कह लें, या महासागर अथवा सदगुणों का भंडार – सबका सार यही है कि जीवन को मोक्ष की ओर प्रवृत्त करना है तो भागवत की शरण जरूरी है। भारत भूमि ही वह स्थान है, जहां इतनी बड़ी संख्या में देवी-देवता स्वयं अवतार लेकर इस सृष्टि का संचालन करते हैं। भगवान के अवतार सज्जनों के कल्याण और दुर्जनों के विनाश के लिए ही होते हैं। बालक ध्रुव की भक्ति में निष्काम भाव थे इसलिए बाल्यकाल में ही उसे भगवान का साक्षात्कार हो गया।