उषाराजे परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में धूमधाम से मना विवाह का उत्सव

इंदौर, 25 सितम्बर। धर्मग्रंथ हमारे शुसुप्त  समाज को जागृत एवं चेतन्य बनाते हैं। मनुष्य का जीवन हमे केवल पशुओं की तरह व्यवहार करने के लिए नहीं, बल्कि सदभाव, परमार्थ और सेवा, करूणा जैसे प्रकल्पों के लिए मिला है। भगवान अनुभूति का विषय है। हृदय में पवित्र संकल्प आएंगे तो विचारों का प्रवाह भी निर्मल हो जाएगा। भगवान की लीलाओं के दर्शन एवं श्रवण से मन के विकार  दूर होते हैं। शरीर की इंद्रियों पर सात्विक प्रभाव होता है। आत्मा और परमात्मा का मिलन है कृष्ण-रुक्मणी विवाह।


प्रख्यात भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधिच ने आज श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज, चित्तौड़ा सोशल ग्रुप, संस्था रंग तरंग एवं समाज की अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में उषानगर स्थित उषा राजे परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में रुक्मणी विवाह प्रसंग पर उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। आज कथा में कंस वध, महारास लीला, फाग उत्सव एवं रुक्मणी विवाह के उत्सव भी धूमधाम से मनाए गए। विवाह के पूर्व महिलाओं ने शानदार गरबा नृत्य भी किया। कथा शुभारंभ के पूर्व विमल हेतावल, डॉ. दिनेशचंद्र गुप्ता, दिनेश गुप्ता, हुकमचंद कुम्भज , अनिल गुप्ता, परमानंद गुप्ता, कैलाशचंद्र गुप्ता, हितेश गुप्ता, अजय गुप्ता, धर्मेन्द्र पाराशर, सचिन हेतावल सोनू, प्रहलाद गुप्ता, रितेश नागर, संदीप अकोतिया आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संरक्षक  प्रहलाददास मेहता, अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन एवं समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि मंगलवार 26 सितम्बर को कृष्ण-सुदामा मिलन प्रसंग की कथा होगी तथा बुधवार को सुबह 9 बजे से यज्ञ-हवन के साथ पूर्णाहुति होगी। 


    आचार्य पं. दाधिच  ने कहा कि भगवान को धन, दौलत, वैभव और ऐश्वर्य नहीं, बल्कि हमारे मन के श्रेष्ठ भाव चाहिए। वे छप्पन भोग के नहीं, हमारे प्रेम भाव के भूखे हैं। रूक्मणी मंगल प्रसंग हमारी भारतीय संस्कृति और मर्यादा का गौरवशाली एवं उजला पक्ष है। रुक्मण विवाह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। कृष्ण योगेश्वर, लीलाधर और नटखट नटवर की यही विशेषता है कि वे कृपा की वर्षा करते भी हैं तो पता ही नहीं चलने देते। हमारे सभी देवी देवता प्राणियों के उद्धार के लिए ही अवतरित होते हैं।