रांची । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‎लिए हेमंत सोरेन का साथ नुकसानदेह सा‎बित हो सकता है। हालां‎कि नी‎तीश कुमार वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस कर वे काफी प्रसन्न नजर आएं। इससे नीतीश कुमार को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में अपनी छवि बनाने में जरूर एक और बड़ी सफलता मिली। लेकिन बिहार की राजनीति में निजी तौर पर सीएम नीतीश कुमार के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है। गौरतलब है ‎कि झारखंड के विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में बिहार के लोग रहते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि भाषा का मुद्दा हो या नियोजन और स्थानीयता का मसला हो, जरूरत पड़ने पर बिहार के सीएम के रूप में नीतीश कुमार उनके पक्ष में आवाज जरूरत उठाएंगे। लेकिन जिस तरह से नीतीश कुमार ने हेमंत सोरेन से सिर्फ विपक्षी एकता के मुद्दे पर चर्चा की, उससे उनके समर्थकों में हैरानी के साथ निराशा भी है।
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पूरी पार्टी की राजनीतिक बुनियाद आदिवासी और मूलवासियों के ईद-गिर्द केंद्रित रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनावी घोषणा पत्र में भी 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाने का वादा किया गया। हेमंत सोरेन से लेकर उनकी पार्टी के तमाम छोटे-बड़े कई नेता भाषा, स्थानीय नीति और नियोजन नीति को लेकर विवादित बयान देते रहे हैं। यही कारण है कि जेएमएम को उन क्षेत्रों में काफी कम समर्थन मिलता है, जिस इलाके में आदिवासी और मूलवासियों की संख्या कम हो। झारखंडी और गैर झारखंडी की भावना को उभारते हुए समय-समय पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी विवादित बयान देते रहे हैं। 
हालां‎कि सीएम हेमंत सोरेन को राज्य के बिहारीकरण की भी चिंता सताती रही हैं। कुछ वर्ष पहले उन्होंने कहा था कि झारखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की छाती पर पैर रखकर और महिलाओं की इज्जत लूटते वक्त भोजपुरी भाषा में ही गाली दी जाती थी। उन्होंने कहा कि ट्राइबल ने झारखंड अलग राज्य की लड़ाई अपनी रिजनल लैग्वेज की बदौलत लड़ी है, न कि भोजपुरी और हिन्दी भाषा की बदौलत। एक इंटरव्यू में हेमंत सोरेन ने कहा था कि मगही और भोजपुरी रिजनल लैग्वैंज न होकर बाहरी लैग्वेंज हैं। हेमंत सोरेन के सीएम बनने के बाद झारखंड भाषा विवाद की आग में भी झुलसा। राज्य सरकार की ओर से 24 दिसंबर 2021 को जिला स्तरीय पदों के लिए जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी की। इस सूची में कई जिलों में भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषा शामिल करने और हटाने के मसले को लेकर कई महीने तक आंदोलन चला।