कविता का सृजन कवि की अंतरधारा एवं मस्तिष्क का योग है-डॉ. संध्या जैन 

    संस्था अखंड संडे के तत्वावधान में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जयंती एवं  मातृ दिवस की पूर्व सन्ध्या के शुभ अवसर पर वरिष्ठ लेखिका डॉ.संध्या जैन की अपनी माँ को समर्पित छठी कृति काव्यानुभूति काव्यसंग्रह का ऑनलाइन लोकार्पण किया गया।
    प्रो.डॉ.सरोज कुमार ने कहा कि इस संग्रह की कविताएँ प्रेरणादायी हैं जो जीवन जीने का आगे बढऩे का संबल देती हैं। ये कविताएँ छंदमुक्त होते हुए भी छंदबद्ध कविताओं की तरह प्रवाह लिए है। उन्होंने कहा कि इन कविताओं में कवयित्री अत्यंत ही सहजता सरलता के साथ अपनी महत्वकांक्षाओं को अभिव्यक्त करती है, याचना करती है कि मैं भी इन्सान हूँ मुझे जीने दो एक आम इन्सान की तरह। सदाशिव कौतुक ने कहा कि ये कविताएँ जीवन की आपाधापी से निकली बानगियाँ हैं। जो जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करती हैं। कुछ कविताएँ राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत हैं तो कुछ कविताओं में स्त्री के सही अधिकारों की पैरवी की गई हैं। चर्चाकार रवीश जैन ने कहा कि ये संग्रह जिंदगी के विभिन्न रूपों से रूबरू कराता है। ये संग्रह  हर उम्र के पाठक के लिए कुछ न कुछ नई सीख देता है।  मुकेश इन्दौरी ने कहा कि जीवन के अनुभवों एवं समाज की विसंगतियों को भाव प्रधान एवं छंदमुक्त कविताओं में अभिव्यक्त किया है। कुछ रचनाएँ राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत हैं जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराती हैं तो कुछ कविताएँ नारी के अंतर्मन की पीड़ा एवं कुछ वृद्धाश्रम बुजुर्गों की दयनीय स्थिती को अभिव्यक्त करती हैं।
     वहीं कृतिकार डॉ. संध्या जैन ने कविता को परिभाषित करते हुए कहा कि कविता का सृजन कवि की अंतरधारा एवं मस्तिष्क का योग है। उन्होंने कहा कि ये कृति काव्यानुभृति माँ को समर्पित 51 रचनाओं से सजा हुआ गुलदस्ता है। पहली पुस्तक प्रवाह दादी मां को समर्पित है दूसरी पुत्री संवाद अपने दादा जी को समर्पित है। महामानव बापू पूज्य पिता को समर्पित है तो अप्पदीपोभव तथा डॉक्टर रामकुमार वर्मा का काव्य वैभव  अपने गुरुजन को समर्पित है। इन सब रिश्तों का प्यार, महत्ता आदि मैंने पुस्तकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया है जो आज अति आवश्यक है। उन्होंने अपनी माँ का स्मरण करते हुए कहा कि मां मेरी नहीं है पर पुस्तक काव्यानुभूति के माध्यम से मैं अपनी मां को जितना भी याद करूँ कम है। माँ होती तो खुशी के आंसू छलक जाते पर नहीं है तो दुख की अश्रु धारा बहने लगती है। माँ का आंचल, मां की ममता, माँ की लोरी का कोई सानी नहीं है। वास्तव में मां जैसा अद्भुत रिश्ता अवर्णनीय है।

इस अवसर पर डॉ. पदमा सिंह, चंद्रकिरण अग्निहोत्री, माधुर जैन, डॉ. रवीन्द्र पहलवान, छत्तीसगढ़ से टी.पी. त्रिपाठी, डॉ.अंजुल कंसल,निरुपमा त्रिवेदी, राजेश रावल, अनिल ओझा, प्रदीप जोशी, व्रजेन्द्र नागर,  नवनीत जैन रजनी दवे, कृष्णा जोशी विराज जैन सहित कई साहित्यकार ऑनलाइन उपस्थित थे ।