मालवी लोकगीतों ने तपती दोपहरी में शीतलता का एहसास कराया
नव तपे की भरी दुपहरी में जब सूरज का पारा चढ़ा हुआ था, लू के थपेड़ों की बयार बह रही थी श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिती में मालवी जाजम बिछाई गई जिसमें मालवी लोकगीतों की प्रस्तुती ने शीतलता का एहसास कराया।
वरिष्ठ मालवी कवि नरहरि पटेल ने नवतपे की तपन को यूं बयां किया- तवा सा तमतमाता तपास का दन / तरस का तिलमिलाता प्यास का दन / अलूणी सांझ रात खाटी है / मिठास निरजला उपास का दन / कुँआ बावड़ी सब खाली खट / उखड़ती सांस, विनास का दन। मुकेश इन्दौरी ने - तपीरी धरती/झुलसी री क्यारी / तरा मरे है दूब हे तेज घणी धूप /काटता गऊँ लथपथ किसान / आको दण तके आसमान। प्यासा पखेरू सूना पनघट सूख्या ओंठ / जलता तृण बरसे तपन / झुलसाय तन मन। कमल किशोर पाण्डेय - तड़को तीखो लगवा लाग्यो/ आँख पे चिलको आवे रे / धरती तपवा लागी तवा सी/ कुलर पंखा भावे रे । डॉ. शशि निगम ने - आयो उनालो तड़को लागे / सगला के छायन छाय/ लू की घणी लपट चाले / सगला सम्भली ने जाय।
लोकगायक शिवनारायण चौधरी ने गुरु वंदना- हो गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ/ना कोई तीरथ जाऊँ जी / अड़सठ तीरथ हैं घट भीतर/ वा ही में मल मल नहाऊँ जी। हरमोहन नेमा ने इन्दौर गौरव दिवस की गाथा वर्णन करती मालवी रचना- करी लो इन्दौर को गुणगान/ यहाँ की रानी अहिल्या बाई/ जिनकी किर्ती देश में महान/ म्हारो इन्दौर रंग रंगीलों / म्हारो इन्दौर छेल छबीलो/ म्हारो इन्दौर स्वच्छता में नम्बर वन/ पूरो देश करीरियो बखान। राजेश भण्डारी ने व्यंगात्मक रचना- बिन पैंदा का लोठया सुनाई। कुसुम मंडलोई ने- हूँ तो वाट जोऊँ पीया दीयो लई ने / मत जाओ जी भरोसो दई ने। नंदकिशोर, नलिन खोईवाल ने व्यंगात्मक रचना सुनाई। राजीव नेमा इन्दौरी ने मालवी हास्य क्षणिकाएँ सुनाकर गुदगुदाया।
- मुकेश इन्दौरी