नई दिल्ली। बरसात के दिनों में दिल्ली की सड़कों पर जलभराव के रूप में विकास बह रहा होता है। और गर्मी के दिनों में दिल्ली टैंकरों के आगे कतार में रहती है या साफ पानी की आपूर्ति के लिए जूझ रही होती है। कई जगह तो पानी का टैंकर सप्ताह में दो ही दिन पहुंच पाता है। अब विधानसभा चुनाव में दिल्ली चाहती है कि पानी की किल्लत और गंदे पानी की आपूर्ति पर कोई तो राजनीतिक दल बात करे।
साल भर जिस संकट से दिल्ली जूझती है उसे मुद्दे पर राजनीतिक दल बात करें। उसमें सुधार के वादे के साथ वोट मांगने आएं। लेकिन, सब राजनीतिक दल मौन हैं सिर्फ रेवड़ी से बजट बिगाड़ने को सब एक-दूसरे से बड़ी योजना की घोषणा कर रहे हैं। राजनीतिक दल बढ़ाचढ़ा कर पानी मुहैया कराने या मुफ्त देने के वादों को प्रबलता से बढ़ा रहे हैं।
आखिर सालभर पानी के लिए किसी न किसी तरह से त्रस्त दिल्ली की कौन सुनेगा? ऐसे में सवाल ये उठता है कि पानी के मामले में राजधानी में देश के किसी दूरदराज के क्षेत्र जैसी स्थिति क्यों है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसे दूर करने में राजनीतिक दल और जल बोर्ड कैसे लापरवाही बरत रहे हैं, इसका क्या है इस संकट को दूर करने के लिए क्या होने चाहिए ठोस उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :सभी पार्टियों के बीच चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की सुविधाएं और पैसे देने की होड़ लगी हुई है, लेकिन दिल्ली वासियों को शुद्ध पेयजल मिले इसकी चिंता किसी को नहीं है। वर्षों से यही स्थिति है। प्रत्येक चुनाव में इसे लेकर सिर्फ राजनीति होती है। दिल्ली में पेयजल समस्या का यही सबसे बड़ा कारण है।
न तो दिल्ली के लिए जीवनदायिनी यमुना को स्वच्छ व अविरल करने पर ध्यान दिया गया और न जल संरक्षण एवं जल वितरण की कमियों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए गए। प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा इसे लेकर वादे बहुत किए गए।