रंगों का पर्व होली एक ऐसा त्योहार है, जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह त्योहार इसलिए भी खास है, क्योंकि लोग आपसी गिले शिकवे दूर करके एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और रिश्तों में आई खटास को दूर करके फिर एक बार मिठास घोल देते हैं.

आपने बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली तो देखी ही होगी. यहां होली पर महिलाओं द्वारा पुरुषों को डंडों से पीटने की परंपरा विश्व प्रसिद्ध है. उसी तरह मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में भी ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है, जो होली पर दिखती है. यह परंपरा आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा अरसे से निभाई जा रही है.

नारियल खरीदने की परंपरा
दरअसल, खरगोन के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में समाज के लोगों द्वारा होली पर नारियल खरीदने और उसकी पूजा करने की परंपरा है. इस परंपरा के तहत होली के पहले लगने वाले भोंगर्या हाट बाजार से समुदाय के लोग नारियल और पूजा की सामग्री खरीदकर लाते हैं. खास बात ये कि घर में जितने सदस्य हैं, उतने नारियल खरीदे जाते हैं.

प्रत्येक सदस्य करता है ये काम
समाज के सुरला गवले, दिनेश गवले, मनोज मौर्य ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के समय हाट बाजार से खरीदकर लाए गए नारियल सहित होलिका माता का विधि-विधान से पूजन करते हैं. घर में बनाए पकवान और मिष्ठान सहित खजूर, काकनी, मांझिया, दालिया, का भोग होलिका को लगाते हैं. होलिका दहन के समय परिवार का प्रत्येक सदस्य चाहे महिला हो, बुजुर्ग हो या बच्चा हो, अपने हाथों से नारियल को गुलाल लगाकर जलती होलिका में डालते हैं.

हर घर जलती है खास होली
समुदाय के लोगों ने बताया कि ये नारियल सार्वजनिक होलिका में नहीं डाले जाते हैं, बल्कि समाज का हर परिवार अपने घर के बाहर होलिका दहन करता है. उसी में नारियल डाले जाते हैं. दो पत्थरों के बीच एक कंडा रखकर होलिका का स्वरूप मानते हैं. ये कंडे (उपले) कहीं से खरीदकर लाएं हुए नहीं होते. गाय द्वारा खेतों में किया गया गोबर, जो स्वतः सुख जाता है. उसी का इस्तेमाल होलिका दहन के लिए करते हैं.

परंपरा का उद्देश्य
समाज के लोगों का मानना है कि होलिका माता की पूजा अर्चना करने और होलिका दहन में नारियल, घर में बना भोजन और अन्य सामग्री जो घर में उपलब्ध हो, चढ़ाने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है.