उषाराजे परिसर में चल रहा  भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह

इंदौर, 24 सितम्बर। भगवान का अवतरण भक्तों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए हुआ है। उनकी लीलाओं में प्राणीमात्र के प्रति सदभाव और कल्याण का चिंतन होता है। संसार की दृष्टि से भगवान की लीलाओं का चाहे जो अर्थ-अनर्थ निकाला जाए, यह शाश्वत सत्य है कि यदि हमारी भक्ति अडिग और अखंड रहेगी तो भगवान को रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा। भक्ति निष्काम और निर्दोष होना चाहिए। भक्ति मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है।  


ये दिव्य विचार हैं प्रख्यात भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधिच के, जो उन्होंने श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज, चित्तौड़ा सोशल ग्रुप, संस्था रंग तरंग एवं समाज की अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में उषानगर स्थित उषा राजे परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में बाल लीला, शंकर लीला, गोवर्धन पूजा एवं छप्पन भोग प्रसंग पर संबोधित करते हुए व्यक्त किये।  प्रारंभ में समाज के अ.भा. अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन, प्रहलाददास मेहता,  धर्मेन्द्र गुप्ता, विमल हेतावल, शंकरलाल गुप्ता, विपिन महाजन, राजकुमार गुप्ता, गगन वाणी, महेश मेहता , विमल जी महाजन, , देवास से श्री सुनील जी महाजन, प्रमोद जी गुप्ता, प्रकाश जी गुप्ता,अरविंद जी कश्यप, बालकृष्ण जी गुप्ता, श्याम जी मेहता सेमलिया एवं अन्य  आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आचार्यश्री की अगवानी सुनील महाजन, प्रमोद गुप्ता, प्रकाश गुप्ता, अरविंद कश्यप, बालकृष्ण गुप्ता, श्याम मेहता, सुरेश गुप्ता, पवन अकोतिया आदि ने की। समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि सोमवार 25 सितम्बर को रुक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। कथा में देवास, बागली, सोनकच्छ, बरोठा, नेवरी, कम्पेल एवं अन्य कस्बों के समाजबंधु भी आ रहे हैं।


    आचार्य पं. दाधिच  ने कहा कि भगवान की भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। कृष्ण की बाल लीलाएं पूतना वध से शुरू होकर कंस वध तक जारी रही और सब में भक्तों के कल्याण का ही भाव है। बृज की भूमि आज भी भगवान की लीलाओं की साक्षी है जहां हजारों वर्ष बाद भी गोपीगीत, महारास और कालियादेह नाग के मर्दन के जीवंत उदाहरण मौजूद है। हमारी संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं है। जितने प्रसंग हमारे धर्मशास्त्रों में बताए गए है, उन सबके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं। यह भारत भूमि का ही चमत्कार है कि यहां सबसे ज्यादा देवी - देवता अवतार लेते है। भक्तों की भी यही भूमि है और लीलाओं का अलौकिक मंचन भी भारत की पुण्यधरा पर ही होता है।