छावनी अनाज मंडी प्रांगण में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में हर दिन नाच रहा पूरा पांडाल  

इंदौर, 12 अक्टूबर। यदि आपस में प्रेम, सदभाव और सहयोग का भाव नहीं है तो ऐसा परिवार भारतीय नहीं हो सकता। धन के बल पर आलीशान बंगले का निर्माण तो किया जा सकता है लेकिन उसमें रहने वाले परिजनों को जोडने के लिए स्नेह और सदभाव का निवेश भी जरूरी है। प्रेम जीवन का अलंकार है। हमारा परिवार गोकुल की तरह होना चाहिए, जहां हम एक-दूसरे के दर्द को भी समझ सकें। हमारे कर्म चंदन की तरह दूसरों को सुगंध देने वाले होना चाहिए। अपने घर-आंगन को गोकुल बना लें, भगवान स्वयं चले आएंगे। स्नेह और मर्यादा की नींव पर ही कोई परिवार एवं समाज टिका रह सकता है।

            वृंदावन के प्रख्यात भागवतचार्य डॉ. मनोज मोहन शास्त्री  ने इंदौर अनाज तिलहन व्यापारी संघ द्वारा छावनी अनाज मंडी प्रांगण में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में बाल लीला, छप्पन भोग एवं नंदोत्सव प्रसंगों के दौरान भजनों पर आज भी वृंदावन से आए संगीतज्ञों और गायकों का जादू देखने को मिला जब पूरा पांडाल एक साथ थिरक उठा। विधायक आकाश विजयवर्गीय भी लगभग एक घंटे कथा श्रवण के लिए रूके और भजनों पर थिरके भी। उन्होंने पं. शास्त्री का स्वागत भी किया।  कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आसपास के गांवों और शहरों से भी आए है। नंद उत्सव के लिए आज भगवान गिरिराज का अनाज से निर्मित भव्य चित्र भी व्यासपीठ और मंच के सामने सुशोभित था, जो दर्शकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना रहा। भगवान गिरिराज की यह कृति मूंग, मक्का, गेहूं, चना, काबुली चना एवं तुअर से श्रृंगारित की गई थी। इसके निर्माण में मंडी समिति के सदस्यों ने ही पूरा श्रमदान किया। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से रूपेश अग्रवाल, कोमल अग्रवाल, प्रकाश जेठालिया, दीपक अग्रवाल, विनोद अग्रवाल, राजेश गोयल, नारायण अग्रवाल, सुलभ सेठी, सुरेश हेड़ा, संतोष बंसल, दिनेश अग्रवाल अग्रोहा, बृजमोहन ऐरन, सुभाष गोयल, ओमप्रकाश अग्रवाल, अनिल तोतला, सचिन अग्रवाल, अनिल खंडेलवाल सहित अनेक श्रद्धालुओं ने व्यासपीठ का पूजन किया। अनाज तिलहन व्यापारी संघ के अध्यक्ष संजय अग्रवाल, वरूण मंगल, राधेश्याम चूरीवाला ने बताया कि शुक्रवार 13 अक्टूबर को  दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक भगावत ज्ञान यज्ञ के दौरान कृष्ण रुक्मणी विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाएगा।

डॉ. शास्त्री ने भगवान की बाल लीलाओं, गोवर्धन पूजा एवं अन्य प्रसंगों की व्याख्या करते हुए कि समय के साथ बदलाव होना चाहिए लेकिन हमारे प्रेम के संबंध नहीं टूटना चाहिए। भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा-आस्था है तो सही, लेकिन इसके साथ जीवन में  दूसरों के काम आने का भाव भी होना चाहिए। भगवान केवल छप्पन भोग या मिष्ठान से प्रसन्न नहीं होते, उन्हें प्रसन्न करने के लिए हमारे कर्मों में परमार्थ का चिंतन भी जरूरी है। भगवान तो इतने करूणा प्रधान हैं कि शिशुपाल और कंस जैसे दुष्टों का भी उन्होंने कल्याण ही किया है। जीवन को मर्यादित बनाने के लिए धर्म-शास्त्रों का आश्रय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हमारा जीवन केवल भोग-विलास तक सीमित नहीं रहना चाहिए। भागवत और भगवान की लीलाएं एक स्वस्थ एवं समृद्ध परिवार, शालीन समाज और सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण की आधारशिला है।