उषाराजे परिसर में श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज की मेजबानी में चल रहे भागवत कथा में मना कृष्ण जन्म 

इंदौर, 23 सितम्बर। राम और कृष्ण इस देश के जन मानस के प्राण तत्व हैं। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण योगेश्वर लीलाधर। राम और कृष्ण भारत भूमि के पर्याय हैं। इन दोनों अवतारों के बिना भारत भूमि की कल्पना करना भी संभव नहीं है। प्रभु राम ने जहां समाज में अत्योदय अर्थात पंक्ति में सबसे अंत में खड़े व्यक्ति का उदय और आदिवासी वनवासी बंधुओं को गले लगाने का संदेश दिया है, वहीं कृष्ण ने कंस प्रवृत्ति का नाश किया है। धर्म की जब-जब हानि होती है, भगवान भारत भूमि पर ही अवतार लेते हैं। 
ये प्रेरक विचार हैं प्रख्यात भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधिच के, जो उन्होंने श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज, चित्तौड़ा सोशल ग्रुप, संस्था रंग तरंग एवं समाज की अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में उषानगर स्थित उषा राजे परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में राम एवं कृष्ण जन्म प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। कथा में आज भी भक्तों का सैलाब बना रहा। कथा शुभारंभ के पूर्व प्रहलाददास मेहता, राधेश्याम चित्तौड़ा, डॉ. कैलाश महाजन, जगदीश चित्तौड़ा, जगदीश पाराशर, सुनील पंचोली, सुनील गुप्ता, रमेशचंद्र मेहता, गणपतलाल गुप्ता, हेमंत हेतावल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आचार्यश्री की अगवानी धर्मेन्द्र गुप्त, उमेश गुप्ता, कमल मेहता, ज्योति प्रकाश गुप्ता, प्रो. हरिशंकर पाराशर, राजेन्द्र गुप्ता, किशोर गुप्ता आदि ने की। आज कथा में उत्सवों का दिन रहा। सबसे पहले वामन अवतार फिर राम अवतार और फिर कृष्ण जन्म के उत्सव धूमधाम से मनाए गए। समाज के अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन ने बताया कि कथा 27 सितम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से सायं 6 बजे तक चल रही है। रविवार को बाल लीला एवं गोवर्धन पूजा के उत्सव मनाए जाएंगे। 


आचार्य पं. आयुष्य ने  भक्ति के प्रसंग पर कहा कि भगवान का अवतार दुष्टों के विनाश के लिए ही होता है। भगवान राम ऐसे अवतार हैं, जिनके सम्पूर्ण जीवनक्रम में कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं हुआ है। भारतीय समाज मर्यादाओं से बंधा हुआ है। दूसरे शब्दों में मर्यादा के कारण ही आज भारतीय समाज सारे विश्व में सर्वोपरि बना हुआ है। दुनिया के सारे विवाद वहां पैदा होते हैं, जहां मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार कर ली जाती है। कृष्ण और राम के चरित्र आज हजारों वर्ष बाद भी वंदनीय और पूजनीय बने हुए हैं, क्योंकि समाज के गौरव और अस्मिता को बढ़ाने तथा दुष्टों का नाश कर भक्तों की रक्षा करने का संकल्प आज भी अनुभूत होता है।