श्री सनाढय ब्राह्मण समाज की मेजबानी में चंद्रभागा मंदिर पर चल रहे भागवत सप्ताह का यज्ञ-हवन के साथ समापन

इंदौर, 28 सितम्बर।   जहां प्रेम होता है, भक्ति भी वहीं होती है। भक्ति जीवन में निर्भयता लाती है। भक्त बनना आसान है पर उसकी निरंतरता बनाए रखना कठिन काम है। माया का पर्दा व्यक्ति को जब तब अपनी मंजिल से विमुख करता रहता है। इस स्थिति में गीता, भागवत, रामायण जैसे धर्मग्रंथ प्रकाश स्तंभ की भूमिका निभाते हैं। मित्रता बहुत गहरा शब्द है। यह केवल शब्द नहीं, रिश्तों और भावनाओं का समंदर है। भागवत जैसे धर्मग्रंथों की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि यह स्वयं भगवान कृष्ण की वाणी है।

भागवत मर्मज्ञ आचार्य पं. सौरभ तेनगुरिया ने आज श्री सनाढ्य ब्राह्मण समाज की मेजबानी में चंद्रभागा जूनी इंदौर स्थित राधाकृष्ण मंदिर पर चल रहे संगीतमय श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-सुदामा मिलन एवं समापन प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। आज कथा में कृष्ण-सुदामा मिलन का भावपूर्ण प्रसंग मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व समाज के अध्यक्ष पं. देवेन्द्र शर्मा, महासचिव पं. संजय जारोलिया, पं. अनिल शर्मा, पं. भगवती शर्मा, पं. कमल शर्मा, प. दीपक बिरथरे, शेखर शुक्ला, राधेश्याम शर्मा, रिपुसूदन शर्मा, प्रभाशंकर शर्मा, अरुण शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संतश्री की अगवानी संगीता जोशी, रेणुका श्रोत्रिय, शीतल दुबे, कविता पचौरी, संतोष लखटकिया, मनोज स्थापक आदि ने की। समापन अवसर पर यज्ञ, हवन एवं पूर्णाहुति के बाद भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई। आचार्य पं. तेनगुरिया का समाज की ओर से सम्मान भी किया गया।

आचार्य पं. तेनगुरिया ने कहा कि भागवत केवल ग्रंथ नहीं, हम सबके जीवन को सदगुणों से अलंकृत करने का सहज मार्ग है। यह हमें ज्ञान और भक्ति के साथ सेवा की राह भी दिखाता है।  भारत भूमि भागवत और गीता,रामायण जैसे धर्मग्रंथों के कारण ही विश्व वंदनीय रही है और आगे भी रहेगी। भागवत श्रवण से भक्ति रूपी पुरुषार्ष का उदय होता है। हम अपने जीवन में परमार्थ और सेवा के जितने अधिक काम करेंगे,  प्रभु हमसे उतने अधिक प्रसन्न रहेंगे। कथा में तो हम सात दिन बैठ लिए, अब कथा को भी अपने अंदर बिठाने का प्रयास करें।