मध्य प्रदेश के इंदौर में श्रीराम का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान राम के बाल स्वरूप की पूजा अयोध्या की तर्ज पर की जाती है. ये मंदिर करीब 500 साल पुराना है. यहां एक ओर रामलला अपने भाइयों के साथ विराजे हैं, तो वहीं दूसरी ओर बालरूप में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं. इंदौर के पंचकुइया स्थित श्रीराम मंदिर में 500 साल पुरानी रामलला की मूर्ति है. ओरछा के मंदिर की प्रतिष्ठित मूर्ति के बाद यहां श्रीराम के बालस्वरूप की सबसे पुरानी मूर्ति है. श्याम वर्ण में रामलला की यह मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है. मंदिर से जुड़े कई चमत्कार भी हैं.

बालक की तरह रखा जाता है ख्याल
पंचकुइया पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर रामगोपाल दास ने Local 18 को बताया कि इस मंदिर में संत और पुजारियों द्वारा मिलकर मनोहारी श्यामवर्ण स्वरूप की देखरेख एक बालक की तरह होती है. पूजा पाठ और भोग रामलला का सभी काम अयोध्या के श्रीराम मंदिर के मुताबिक किया जाता है. सुबह मंगल आरती के बाद सूखे-मेवे मिष्ठान का भोग लगाया जाता है. श्रृंगार आरती पर माखन-मिश्री का भोग होता है, वहीं दोपहर 12 बजे राजभोग आरती होती है. शाम को 4 बजे भगवान के सोकर उठने पर उन्हें जल पिलाया जाता है व फल का भोग अर्पित किया जाता है. शाम को शयन के समय दूध का भोग भी लगाया जाता है.

मंदिर की स्थापना पर बना मंगलकारी संयोग
आश्रम में उपलब्ध शिलालेख के अनुसार, मूर्ति की प्रतिष्ठा रामनवमी पर पुष्य नक्षत्र में हुई है. महाराज जी बताते हैं कि देशभर में सियाराम, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं लेकिन, यहां भगवान अपने तीनों भाइयों के साथ विराजे हैं. श्रीराम के श्यामवर्ण के बालस्वरूप से लेकर विराट रूप तक की मूर्तियां स्थापित हैं. यहां राम की श्याम जबकि कृष्ण की गोरे वर्ण की मूर्ति है. दोनों को बालस्वरूप में एक साथ देखना अद्भुत संयोग है. इस मंदिर की यही खासियत है. यहां जन्माष्टमी और रामनवमी पर खास आयोजन होते हैं.


आश्रम की सामग्री से लगता है भोग
उन्होंने कहा कि मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित है. इसके साथ ही श्रीराम भक्त हनुमान जी भी खेड़ापति सरकार के नाम से स्थापित है. टीकम महाराज व भगवान शिव का मंदिर भी है. इस आश्रम के जरिए गौसेवा, पक्षी सेवा और संत साधु सेवा की जाती है. भगवान को लगाए जाने वाले भोग की सामग्री आश्रम में उगाए जाने वाले अनाज से ही तैयार की जाती है. यहां स्थित गौशाला में सैकड़ों गाय हैं. इनसे प्राप्त दूध से ही मिष्ठान बनाए जाते हैं.