उषाराजे परिसर में श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज की मेजबानी में चल रहे भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में  मनेगा कृष्ण जन्मोत्सव

इंदौर, 23 सितम्बर। भक्ति किसी भी रूप में हो,  उसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। विडंबना यह है कि हम लोगों ने वृद्धावस्था को ही  भक्ति करने की सही अवस्था मान लिया है या यों कहें कि हमें भक्ति का जुनून वृद्धावस्था में ही चढ़ता है। यदि बाल्यकाल से ही भक्ति के संस्कार मिलें तो वृद्धावस्था संवर जाती है। भक्ति के बीज बचपन में डाले जाना चाहिए, पचपन में नहीं। भक्ति निष्काम भाव से होना चाहिए। भक्ति में पाखंड और प्रदर्शन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकते। 
    ये दिव्य विचार हैं प्रख्यात भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधिच के, जो उन्होंने श्री नागर चित्तौड़ा वैश्य महाजन समाज,  चित्तौड़ा सोशल ग्रुप, संस्था रंग तरंग एवं समाज की अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में उषानगर स्थित उषा राजे परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा सप्ताह में व्यक्त किए। कथा में प्रतिदिन भक्तों का सैलाब उमड़ता जा रहा है। आज कथा शुभारंभ के पूर्व आयोजन समिति की ओर से महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती किरण महेन्द्र गुप्ता, सचिव सपना अजय गुप्ता, सुभाष वाणी, रामगोपाल गुप्ता, हुकमचंद अकोतिया, शरद हेतावल, प्रेमप्रकाश गुप्ता, सागर अकोतिया एवं अन्य समाजबंधुओं ने व्यासपीठ पूजन किया। समिति के संरक्षक प्रहलाद मेहता एवं अध्यक्ष राजेन्द्र महाजन ने बताया कि आज कथा में भगवान राम एवं कृष्ण के जन्मोत्सव धूमधाम से मनाए जाएंगे। कथा 27 सितम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से सायं 6 बजे तक चल रही है। 
    आचार्य पं. आयुष्य ने  भक्ति के प्रसंग पर कहा कि हम सबके जीवन में भी सुरुचि एवं सुनीति जैसी दो धाराएं चलती रहती हैं। सुनीति शास्त्र सम्मत होती है, जबकि सुरुचि हम अपनी मन मर्जी से तय करते हैं। सुनीति हमेशा प्रासंगिक होती है, जबकि सुरुचि को हम अपनी सुविधा के अनुसार बदलते रहते हैं। यही कारण है कि हम अपने लक्ष्य से विमुख होते चले जाते हैं। गृहस्थ रहते हुए भक्ति करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। गृहस्थ जीवन को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। प्रेम, दया, करुणा, सत्य जैसे गुणों का सृजन भक्ति मार्ग से ही संभव है। भारत भूमि के दुनिया में सर्वश्रेष्ठ इसीलिए कहा गया है कि यह जितनी भक्तों की भूमि रही है, उतनी ही देवताओं की भी भूमि रही है। जितने भक्त और देवता भारत में हुए उतने दुनिया के किसी और देश में नहीं हुए हैं। आज भी भारत विश्व गुरू बनने की ओर आगे बढ़ रहा है यह हम सबके लिए गौरव की बात होना चाहिए।