सनातन धर्म में चार प्रमुख त्योहार माने गए हैं. उनमें से एक है रंगों का पर्व होली. फाल्गुन मास में आने वाले होली पर्व का इंतजार हर किसी को बड़ी बेसब्री से रहता है. होली के पहले होलिका दहन की परंपरा है. पर क्या आपको पता है कि होलिका दहन रात में क्यों होता है और क्यों दहन को शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए?

खरगोन निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज मेहता ने Local 18 को बताया कि शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्यापी पूर्णिमा को होली मनाने का विधान है. 24 मार्च रविवार को सुबह चतुर्थी और शाम को पूर्णिमा लग जाएगी. अगले दिन 25 सोमवार मार्च को होली खेली जाएगी. प्रदोष काल में होलिका पूजन करना चाहिए.

होलिका रात में जलाने का वैज्ञानिक महत्व
शास्त्रों में होलिका दहन मध्य रात्रि को करने का विधान है. इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है कि फसलों पर लगने वाले कीड़े और संक्रमण फैलाने वाले कीड़े रात के समय जल्दी अग्नि की ओर आकर्षित होते हैं और जलकर मर जाते हैं. लेकिन, इस दौरान भद्रा का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है. भद्रा के दौरान होलिका दहन नहीं कर सकते.

क्या होता है भद्रा काल
पंचांग में पांच चीजों का उल्लेख मिलता है. तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण. इसमें तिथि का आधा भाग करण कहलाता है. कुल 11 करण होते हैं. उनमें से एक भद्रा नाम का करण होता है. भद्रा में कोई भी शुभ काम नहीं होते हैं. ऐसे में जब भद्रा आ जाए तो उसको छोड़कर अग्नि जलाई जाती है. शास्त्रों में दो पर्व कभी भी भद्रा काल में नहीं मनाए जाते. पहला रक्षाबंधन और दूसरा होलिका दहन.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है की भद्रा काल में होलिका दहन करने से नगर की हानि होती है. इस साल भी भद्रा के होने से किसी भी समय होलिका दहन नहीं कर सकते. पंचांग के अनुसार इस बार भद्रा काल 24 मार्च रात 11:20 बजे तक रहेगा, इसलिए होलिका दहन 11:20 बजे के बाद ही करें. जबकि, इसके पहले शाम के समय प्रदोष काल में होलिका पूजन करें.

अनोखा होलिका दहन
होलिका दहन से वातावरण शुद्ध होता है. हवा में फैला संक्रमण खत्म होता है. खरगोन में भी सैकड़ों स्थानों पर होलिका दहन होता है. लेकिन, गांव कोठा बुजुर्ग की होलिका दहन काफी प्रसिद्ध है. यहां होलिका दहन कुदरती है. अपने आप होली में अग्नि प्रज्वलित होती है. यह नजारा देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. लोग इसे चमत्कार से कम नहीं मानते है.